Medical Reimbursement for Employee: सरकारी सेवकों एवं उनके आश्रितों की चिकित्सा पर हुए खर्च का भुगतान सरकार द्वारा किया जाता है। सरकार द्वारा किए गए भुगतान को ही चिकित्सा व्यय प्रतिपूर्ति कहा जाता है। सटीक जानकारी के अभाव के चलते ज्यादातर सरकारी सेवक स्वयं अपने अथवा अपने आश्रितों के चिकित्सा व्यय के भुगतान का लाभ शासन के स्थापित नियमों के अंतर्गत नहीं ले पाते हैं ।
आज इस लेख के द्वारा चिकित्सा व्यय प्रतिपूर्ति हेतु अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के संपूर्ण जानकारी दी जाएगी।
चिकित्सा प्रतिपूर्ति कब मिलती है? Medical Reimbursement for Employee
चिकित्सा प्रतिपूर्ति केवल सरकारी सेवक स्वयं यथास्थिति पति या पत्नी और (दो) माता-पिता, बच्चे, सौतेले बच्चे, अविवाहित तलाकशुदा परित्यक्त पुत्री अविवाहित तलाकशुदा परित्यकता बहनें अवयस्क भाई और सौतेली माता के उपचार के लिए यह सुविधा मान्य होती है बशर्ते की उपरोक्त आश्रित सरकारी सेवा सेवक पर पूर्णतः आश्रित हों और सामान्यतः सरकारी सेवक के साथ हीं निवास कर रहे हों ।
सामान्यतः चिकित्सा व्यय प्रतिपूर्ति लाभार्थी के निवास या तैनाती के स्थान पर उपलब्ध कराई जाती है चाहे वह सरकारी चिकित्सालय, चिकित्सा महाविद्यालय में हो या किसी भी निजी चिकित्सालय में । अगर सरकारी चिकित्सालय में वह सेवा उपलब्ध नही तो उपचारी चिकित्सक सरकारी पर्चे पर आपको उच्च चिकित्सा हेतु संदर्भित (रेफर) करेंगे।
उत्तर प्रदेश सरकारी (चिकित्सा परिचर्या) नियमावली 2011 PDF
उत्तर प्रदेश सरकारी (चिकित्सा परिचर्या) नियमावली 2014 PDF
उत्तर प्रदेश सरकारी (चिकित्सा परिचर्या) प्रथम संशोधन नियमावली 2014
उत्तर प्रदेश सरकारी (चिकित्सा परिचर्या) नियमावली तृतीय संधोशन 2021
सरकारी अस्पताल से Refer न होने पर
अगर तत्कालिक / आपातकालीन स्थिति में किसी निजी चिकित्सालय में उपचार की जरूरत है तो उपचारी चिकित्सक के द्वारा आपको आपात दशा प्रमाणित करने का प्रमाण पत्र उपलब्ध कराया जाएगा एवं रोगी द्वारा अपने कार्यालयाध्यक्ष (DDO) को यथाशीघ्र उपचार प्रारंभ होने के 30 दिनों के भीतर इस संबंध में सूचना देनी होगी।
Medical Reimbursement का दावा प्रस्तुत करने हेतु नियम
- चिकित्सा दावा, चिकित्सा परिचर्या (प्रथम संशोधन) नियमावली, 2014 के द्वारा निर्धारित परिशिष्ट-ग पर प्रस्तुत किया गया है अथवा नहीं। किसी अन्य प्रारूप या किसी अन्य तरीके से चिकित्सा दवा का आवेदन मान्य नहीं होता। चिकित्सा दावा निर्धारित प्रारूप पर ही प्रस्तुत करना होगा।
- निर्धारित प्रारूप पर स्वास्थ्य पत्रक (Health card) पर उपयुक्त जगह पर परिवार के फोटो को अपने कार्यालयाध्यक्ष (DDO) से सत्यापित और प्रतिहस्ताक्षरित कराना आवश्यक होगा।
- चिकित्सा दावा आवश्यक रूप से नियम 16 के तहत निर्धारित तीन माह की समयावधि के अंतर्गत प्रस्तुत किया जाना चाहिए। अगर तीन महीने के अंदर दावा प्रस्तुत नहीं किया जा सका है तो विलंब का कारण स्पष्ट करते हुए विभागीय सचिव शासन स्तर से अनुमोदन प्राप्त करते हुए दावा प्रस्तुत किया जाए।
- चिकित्सा दावे के साथ डिस्चार्ज समरी, ओपीडी पर्चा, रेफरल लेटर (संदर्भ पत्र ) उपचार परामर्श पत्र और उपचारित चिकित्सक द्वारा मुहर सहित विधिवत सत्यापित बिल वाउचर मूल रूप में दावे के साथ संलग्न करने होंगे।
- निर्धारित प्रारूप पर बहिरंग उपचार / ओपीडी उपचार के लिए अनिवार्यता प्रमाण पत्र ए (Essentiality Certificate A) और अंतरंग उपचार भर्ती होकर इलाज के लिए अनिवार्यता प्रमाण पत्र बी (Essentiality Certificate B) भी उपचारी चिकित्सक द्वारा विधिवत हस्ताक्षरित एवं चिकित्सालय के प्रभारी अधीक्षक द्वारा मोहर सहित प्रति हस्ताक्षरित किया जाना चाहिए।
- अगर चिकित्सा दावा आश्रित से संबंधित है तो उस आश्रित का प्रमाणपत्र भी दावे के साथ लगाना होगा कि आश्रित किसी सरकारी सेवा में अथवा पेंशनभोगी नहीं है या उस आश्रित का आय का अपना कोई साधन नहीं है।
- संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ, डा० राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान, गोमती नगर, लखनऊ, आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय, सैफई, इटावा, किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ और ऐसे अन्य समान सरकारी पोषित संस्थानों में उपचार प्राप्त करने पर यदि लाभार्थी उक्त संस्थानों के चिकित्सा अधीक्षकों द्वारा सम्यक्त रूप से हस्ताक्षरित /सत्यापित बीजकों की कुल घनराशि की पाँच प्रतिशत धनराशि को वहन करने में सहमत हो तो ऐसी स्थिति में उपर्युक्त बीजकों का शेष पंचानवे (95% ) प्रतिशत धनराशि का भुगतान सरकार द्वारा किया जायेगा और ऐसे बीजकों का मुख्य चिकित्सा अधिकारी या कोई अन्य प्राधिकृत अधिकारी द्वारा सत्यापित / प्रतिहस्ताक्षरित किये जाने से छूट प्रदान की जायेगी। यदि लाभार्थी बीजकों की पाँच प्रतिशत धनराशि वहन करने में असहमत हो, तो चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के सक्षम प्राधिकारियों द्वारा बीजकों को सत्यापित और प्रतिहस्ताक्षरित किये जाने के पश्चात ही उक्त संस्थानों के चिकित्सा बीजकों का मुगतान पूर्वतर नीति के अनुसार किया जायेगा।
- उल्लिखित चिकित्सालयों में चिकित्सा होने की स्थितिमें सम्बन्धित के चिकित्सा अधीक्षकों द्वारा हस्ताक्षरित / सत्यापित बीजकों की कुल धनराशि की पाँच प्रतिशत धनराशि का वहन स्वंय करने हेतु लाभार्थी द्वारा सहमति पत्र दिया गया है अथवा नहीं।
चिकित्सा प्रतिपूर्ति फॉर्म (Medical Reimbursement Form) To Download / save Click Here
पेंशनरों को चिकित्सा व्यय की प्रतिपूर्ति Medical Reimbursement for Pensioners
दावा सेवानिवृत्त कार्मिकों से सम्बन्धित होने की स्थिति में शासनादेश सं0-12/2015 / ए-1-544 / दस-2015-10(6)/90, दिनांक 31.07.2015 की व्यवस्थानुसार वांछित विवरण यथा पी०पी०ओ० संख्या, बैंक खाता संख्या, बैंक का नाम एवं शाखा, बैंक का आई०एफ०एस०सी० कोड (IFSC CODE) एवं जनपद तथा कोषागार का नाम जहाँ से उनकी पेंशन आहरित की जा रही है, सम्बन्धी विवरण साक्ष्य सहित दावे के साथ संलग्न किये गये हैं अथवा नहीं।
और इन सबको मूल रूप में दावे के साथ जमा कराना होगा पेंशनर उस जिले के कार्यालय अध्यक्ष को अपना दावा प्रस्तुत करेंगे जहाँ से वह पेंशन आहरित कर रहा है पर यदि जहाँ ऐसा कोई कार्यालय नहीं है तो उस जिले का जिला मजिस्ट्रेट पेंशनर का कार्यालय अध्यक्ष होगा।
उपचार के दौरान मृत सरकारी सेवकों के चिकित्सा प्रतिपूर्ति दावों का भुगतान उनके परिवार के सदस्य को दिया जाता है। अतः भुगतान पारिवारिक सदस्य होने के सम्बन्ध में विधिक अभिलेखीय साक्ष्य संलग्न होना आवश्यक है।
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क्या IVF के इलाज का भुगतान चिकित्सा प्रतिपूर्ति के अन्तर्गत आता है?
उ०प्र० सरकार द्वारा जारी की गयी चिकित्त्सा परिचर्या नियमावली में ऐसी किसी बीमारी या इलाज का स्पष्ट उल्लेख नहीं है जिसका भुगतान चिकित्सा प्रतिपूर्ति नियमावली के अन्तर्गत देय न हो।
हाल ही में मा० उच्च न्यायालय‚ इलाहाबाद में याेजित रिट याचिका संख्या WRIT – A No. – 946 of 2021‚ राधे श्याम बनाम State Of U.P. Thru. Secy. Planning Lko. And Others में मा० उच्च न्यायालय‚ इलाहाबाद द्वारा दिनांक 21-02-2023 को आदेश पारित किया गया है कि-
“If there was no treatment available in government or authorized government hospital, it was incumbent upon the petitioner to get the same from the private hospital. Even non presence of emergency certificate does not in any manner impact the claim of petitioner. There is no other reason given in the impugned order and the wordings used, other than emergency certificate, are vague and does not specifically provide as to why the certificate is not sufficient. Since, the emergency certificate has no relevance in the present case as it is not disputed that there is no treatment available in the government or authorized government hospital, the impugned order dated 11.01.2019 cannot stand and the same is set aside.
Respondents are directed to clear the claim of petitioner within a period of two months from the date a certified copy of this order is placed before him. With the aforesaid, the writ petition stands allowed.“
चिकित्सा प्रतिपूर्ति से सम्बन्धित प्रश्न एवं उत्तर
प्रश्नः चिकित्सा प्रतिपूर्ति का दावा कितने दिनों के अन्दर प्रस्तुत करना होता है?
उत्तरः इलाज होने के 03 माह के भीतर।
प्रश्नः चिकित्सा प्रतिपूर्ति का दावा कितने दिनों के अन्दर प्रस्तुत करना होता है?
उत्तरः इलाज होने के 03 माह के भीतर।
प्रश्नः क्या कार्मिक अपने या अपने आश्रित के इलाज हेतु विभाग से अग्रिम धनराशि प्राप्त कर सकता है?
उत्तरः हॉं, नियमावली में दिये गये निर्देशानुसार।